Sh. L. N. Hindu College, Rohtak, previously known as Hindu College, Rohtak, was founded in 1971 by Hindu Education Society, Rohtak, under the blessings and leadership of Dr Mangal Sen. Ji for providing the value-based education in Arts, Commerce, Management, Computer Science and Science department to the growing number of students of this area. To accommodate more and more students, the College Management purchased 13acres of land on Bhiwani Road, Rohtak, on which the foundation stone of the new building was laid by 1008 Swami Gurucharan Dass Ji Maharaj in 1974. Subsequently, the heirs of Shri Lal Nath Ji donated 250 acres of agricultural land to the Society. Hence, the College was renamed as Sh. L. N. Hindu College, Rohtak.
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संत शिरोमशि स्वामी गरुुचरण दास जी महाराज
स्वामी श्री गुरुचरण दास जी का जन्म सन् 1890 में कश्मीर में हुआ। इनके बचपन का नाम पंडित कृपाराम था। बाल्य अवस्था में ही उन्होंने घर का त्याग कर दिया और ज्ञान प्राप्ति के लिए निकल पड़े। उनके गुरु का नाम स्वामी ब्रह्मदास था। स्वामी ब्रह्मदास झंग मधियाना के निवासी थे। श्री गुरुचरण दास जी आजादी के आन्दोलन में भी शामिल हुए और 1942 में जेल यात्रा की। इन्होंने पाकिस्तान, बर्मा, भूटान आदि देशों में धर्म प्रचार का कार्य किया। सन् 1947 में इन्होंने आश्रम का निर्माण करवाया। 1948 में वे रोहतक पहुंचे व श्री सनातन धर्म पुत्री पाठशाला की स्थापना की, जो आज दो विशाल भवन, पुत्री पाठशाला व कन्या उच्चतर विद्यालय के रूप में स्थित है। 1950 में उन्होंने दुर्गा भवन मंदिर का निर्माण बिरला मंदिर दिल्ली की तर्ज पर करवाया। इन्होंने अनेकों जगहों पर सनातन धर्म मदिरों का निर्माण करवाया जिसमें रोहतक का बजरंग भवन मंदिर व गुफा मंदिर प्रसिद्ध है। स्वामी जी अपने पूरे जीवनकाल में सामाजिक कार्यों में लीन रहे। 1962 में भारत चीन युद्ध में स्वामी जी ने 11 लाख रुपये की धन राशि सरकारी राहत कोष में दान दी। सन् 1971 में उन्होंने डॉ. मंगलसेन जी के साथ मिलकर श्री लाल नाथ हिन्दू कॉलेज की नींव रखी, जो आज शिक्षा के क्षेत्र में एक अग्रणी संस्थान है। सन् 1978 में स्वामी जी सांसारिक यात्रा पूरी करके प्रभु के चरणों में विलीन हो गए।
संत शिरोमशि बाबा लालनाथ जी महाराज
श्री लाल नाथ जी का जन्म सन् 1725 में हुआ। वे जूना अखाड़े के महंत थे, जो आजकल गुजरात में है। गुरु जी से शिक्षा प्राप्त करके इन्होंने धर्म प्रचार का काम शुरु किया। सारे भारत का भ्रमण करते हुए और धर्म प्रचार करते हुए सन् 1812 में उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान के झंग शहर के मेहता चौक पर धूनी लगाकर तपस्या की। झंग शहर में उन्होंने लक्ष्मी नारायण मंदिर बनवाया जो आज भी वहां स्थित है। उनके अनुयायी प्रत्येक वर्ग के व्यक्ति थे। बाबा लाल नाथ जी सामाजिक कुरीतियों के घोर विरोधी थे और वे जन-मानस में किसी भी भेद के खिलाफ थे। उनके अनुयायियों ने पूरे भारत वर्ष में धर्म का प्रचार किया। बाबा लाल नाथ जी शिक्षा के समर्थक थे। उनके पद चिन्हों पर चलते हुए उनके अनुयायियों द्वारा कॉलेज को भूमि प्रदान की गई ताकि रोहतक क्षेत्र के बच्चे शिक्षा से वंचित न रह सकें। सन् 1847 में उन्होंने अपना शरीर छोड़ दिया। उनके बाद श्री वासुदेव जी 18वें महंत रहे जिन्होंने कॉलेज को भूमि दान की।
माननीय डॉ. मंगलसैन जी
डा०मंगल सेन जी का जन्म 27 अक्टूबर, सन् 1927 को सरगोवा के झावारिया गांव(पाकिस्तान) में हुआ । वे अपने अध्ययन काल के प्रारंभ से ही एक कुशाग्र बुद्धि और होनहार छात्र थे । प्रारंभ से ही उनका जीवन समाज के लिए समर्पित रहा है।प्रखरराष्ट्रवादी होने के साथ-साथ राष्ट्रार्थ सब कुछ त्यागने की सदैव उनकी आकांक्षा रही । उन्होंने बी.ए.एल. एल.बी. तक की शिक्षा प्राप्त की तथा होम्योपैथिक चिकित्सक भी रहे। वे हिंदुत्व, राष्ट्रवाद व भारतीय संस्कृति के सजग प्रहरी थे ।आरम्भ से ही उनके व्यक्तित्व में आत्मविश्वास, निर्भीकता और सत्यनिष्ठा इस प्रकार कूट-कूट कर भरी हुई थी कि किसी भी परिस्थिति में वे अपने सिद्धांतों से विचलित नहीं होते थे। वे परम निष्ठावान समाजसेवक,जो कि निस्वार्थ भावना से जीवन पर्यन्त कार्य करते रहे।हिंदी आंदोलन हो या गौ हत्या बंद करने संबंधी आंदोलन, कश्मीर समस्या हो या हरियाणा के हितों की रक्षा, पाकिस्तान या चीन के आक्रमण के समय में अथवा प्रत्येक सामाजिक व राष्ट्रीय संकट के क्षणों में उनकी अत्यंत सक्रिय भूमिका रही । 1946 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में उन्होंने अपना सार्वजनिक जीवन प्रारंभ किया। अनेक वर्षों तक जम्मू कश्मीर प्रांत में कार्य किया । 1947 में जब कश्मीर पर आक्रमण हुआ तब वे उड़ी में थे। विभिन्न आंदोलन तथा सत्याग्रहों में 15 बार आप जेल गए तथा लगभग 6 वर्षों से अधिक कारावास की यात्राओं को सहा। “आयाराम-गयाराम” की राजनीति में जहां राजनीति को कलंक लगा दिया, राजनीति की आड़ में जहां स्वार्थ और भष्ट्राचार व्याप्त हो रहा था, वहां डॉक्टर साहब की छवि एक ईमानदार एवं देशभक्त राजनीतिज्ञ के रूप में रही। उन्होंने सदा ही अपने सहयोगियों से नहीं, अपने विरोधियों से भी सम्मान प्राप्त किया। आज की राजनीति में जहां नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए जाते हैं वहां इतने लंबे समय तक राजनीति में रहने के बाद भी उन पर इस प्रकार का आरोप नहीं लगा इसलिए उनकी आवाज़ में आत्मशक्तिथी, दबंगता थी। डॉक्टर साहब अनेक सामाजिक, धार्मिक एवं शिक्षण संस्थानों से जुड़े हुए थे। 1971 में उनके ही कठोर परिश्रम एवं सदप्रयत्नों से हिंदू कॉलेज की स्थापना हुई। मेडिकल कॉलेज एवं विश्वविद्यालय की स्थापना में उनका सक्रिय योगदान रहा । उनका यही प्रयास था कि शिक्षा के माध्यम से नवयुवकों में राष्ट्रचिंतन को एक दिशा मिले। उनके मन में भावी पीड़ी के हृदय में राष्ट्रीयता की भावना जागृत करने की उत्कंठ इच्छा थी। डॉक्टर साहब अलौकिक गुणों के धनी थे। कर्तव्य परायणता, ईमानदारी एवं कर्मठता, निस्वार्थ तथा दृढ़ इच्छा शक्ति, त्याग, दूरदर्शिता एवं स्पष्टवादिता अनेक गुणों से विभूषित उस विराट पुरुष के गुण आज भी हमारी चेतना में जीते हैं। मृत्यु से कुछ समय पहले रोगों एवं कष्टों से घिरे होने पर भी उन्होंने कार्य करना नहीं छोड़ा। 02 नवंबर 1990 को राम कार सेवा के लिए अस्वस्थ हुए भी अनेक कार्यकर्ताओं के साथ अयोध्या गए जहां पर उन्हें गिरफ्तार कर पीलीभीत जेल में रखा गया। भारत माता के इस अमर सपूत का 02 दिसंबर 1990 को हृदय गति रुक जाने से देहांत हो गया।